حديث رقم 13514 - من كتاب مصنّف بن أبي شيبة - كِتَابُ النِّكَاحِ

نص الحديث

13514 حَدَّثَنَا وَكِيعٌ ، عَنْ إِسْرَائِيلَ ، عَنْ إِبْرَاهِيمَ بْنِ عَبْدِ الْأَعْلَى ، عَنْ سُوَيْدِ بْنِ غَفَلَةَ ، قَالَ : كَانُوا يَكْرَهُونَ الشِّغَارَ ، وَالشِّغَارُ : الرَّجُلُ يُزَوِّجُ الرَّجُلَ عَلَى أَنْ يُزَوِّجَهُ بِغَيْرِ مَهْرٍ *

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التخريج
اخرجه عبدالرزاق في مصنفه ( 15/1035 برقم 10138 و 15/1035 برقم 10139 و 15/1035 برقم 10140 و 15/1072 برقم 10441 و 16/1368 برقم 12720 و 16/1368 برقم 12721 و 17/1526 برقم 13956 و 17/1531 برقم 14006 ) وأبو القاسم البغوي في الجعديات ( 0/277 برقم 2523 و 0/277 برقم 2524 ) وابن أبي شيبة في مصنفه ( 10/1822 برقم 13512 و 10/1822 برقم 13513 و 10/1822 برقم 13514 و 10/1822 برقم 13516 و 10/1822 برقم 13517 و 16/3186 برقم 21882 و 16/3240 برقم 22135 و 33/4989 برقم 32004 ) وعبد بن حميد في مسنده ( 1/118 برقم 1258 و 1/118 برقم 1261 ) والترمذي في العلل الكبير ( 16/12 برقم 296 ) وابن أبي عاصم في الآحاد والمثاني ( 0/948 برقم 2387 ) والبزار في مسنده ( 57/837 برقم 2988 و 57/837 برقم 2989 و 57/837 برقم 2993 ) وأبو يعلى الموصلي في مسنده ( 0/151 برقم 5662 و 0/151 برقم 5686 و 0/249 برقم 7205 ) وابن جارود في المنتقى ( 6/65 برقم 583 و 6/71 برقم 700 و 6/71 برقم 701 ) والروياني في مسنده ( 1/2 برقم 72 و 1/2 برقم 117 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 14/508 برقم 3281 و 14/508 برقم 3282 و 14/508 برقم 3283 و 14/508 برقم 3284 و 14/508 برقم 3285 و 14/508 برقم 3286 و 14/508 برقم 3287 و 14/508 برقم 3288 و 14/508 برقم 3289 و 14/508 برقم 3290 و 14/508 برقم 3291 و 14/508 برقم 3292 و 17/603 برقم 3976 ) والطحاوي في شرح معاني الآثار ( 8/12 برقم 2856 و 8/12 برقم 2857 و 15/5 برقم 3621 و 15/7 برقم 3674 ) والطحاوي في مشكل الآثار ( 0/151 برقم 1121 و 0/151 برقم 1124 و 0/151 برقم 1125 و 0/179 برقم 1627 و 0/216 برقم 2261 و 0/405 برقم 5201 ) والنحاس في الناسخ والمنسوخ ( 7/29 برقم 204 ) وابن الأعرابي في معجمه ( 1/1 برقم 291 ) والطبراني في الكبير ( 136/573 برقم 11765 و 136/573 برقم 11860 و 136/573 برقم 12844 و 138/602 برقم 14240 و 138/602 برقم 14241 و 138/602 برقم 14242 و 138/602 برقم 14293 و 138/602 برقم 14308 و 138/602 برقم 14309 و 138/602 برقم 14310 و 138/602 برقم 14316 و 138/602 برقم 14327 و 138/602 برقم 14462 و 138/602 برقم 14519 و 138/602 برقم 14521 و 143/639 برقم 15556 و 144/672 برقم 16578 و 136/573 برقم 11765 و 136/573 برقم 11860 و 136/573 برقم 12844 و 138/602 برقم 14240 و 138/602 برقم 14241 و 138/602 برقم 14242 و 138/602 برقم 14293 و 138/602 برقم 14308 و 138/602 برقم 14309 و 138/602 برقم 14310 و 138/602 برقم 14316 و 138/602 برقم 14327 و 138/602 برقم 14462 و 138/602 برقم 14519 و 138/602 برقم 14521 و 143/639 برقم 15556 و 144/672 برقم 16578 ) وأبو نعيم الأصبهاني في حلية الأولياء ( 0/290 برقم 5475 و 0/406 برقم 9248 ) والبيهقي في السنن الكبير ( 9/235 برقم 6672 و 9/237 برقم 6710 و 13/445 برقم 9992 و 13/446 برقم 10187 و 13/446 برقم 10194 و 13/448 برقم 10457 و 39/738 برقم 13244 و 39/738 برقم 13245 و 39/738 برقم 13246 و 39/738 برقم 13247 و 39/738 برقم 13248 و 39/738 برقم 13249 و 39/738 برقم 13250 و 61/1031 برقم 17764 و 62/1044 برقم 18160 ) والبيهقي في السنن الصغير ( 10/353 برقم 1949 و 28/604 برقم 3492 ) والبخاري في صحيحه ( 9/373 برقم 568 و 67/2663 برقم 4839 و 90/3648 برقم 6594 ) ومسلم في صحيحه ( 23/593 برقم 2629 و 23/593 برقم 2630 و 23/593 برقم 2631 و 23/593 برقم 2632 و 23/593 برقم 2633 و 28/661 برقم 2976 ) وأبو داود في سننه ( 3/247 برقم 1369 و 6/403 برقم 1807 و 6/405 برقم 1813 و 6/405 برقم 1814 و 9/592 برقم 2259 و 15/879 برقم 2855 ) والترمذي في جامعه ( 11/772 برقم 1104 و 11/772 برقم 1105 و 11/773 برقم 1106 و 14/842 برقم 1207 و 21/1102 برقم 1599 ) وابن ماجه في سننه ( 10/509 برقم 1888 و 10/509 برقم 1889 و 10/509 برقم 1890 و 37/1368 برقم 3962 ) والنسائي في الصغرى ( 21/1044 برقم 1845 و 26/1674 برقم 3318 و 26/1674 برقم 3319 و 26/1674 برقم 3320 و 26/1675 برقم 3321 و 26/1675 برقم 3322 و 28/1788 برقم 3574 و 28/1789 برقم 3575 و 36/1860 برقم 3865 ) وإسماعيل بن جعفر في أحاديثه ( 0/2 برقم 113 ) والطيالسي في مسنده ( 33/49 برقم 868 ) وعبدالرزاق في مصنفه ( 6/568 برقم 6480 و 14/946 برقم 9546 و 15/1035 برقم 10131 و 15/1035 برقم 10132 و 15/1035 برقم 10133 و 15/1035 برقم 10134 و 15/1035 برقم 10135 و 15/1035 برقم 10136 و 15/1035 برقم 10137 ) وأحمد في المسند ( 3/8 برقم 1834 و 3/8 برقم 3434 و 5/10 برقم 4396 و 5/10 برقم 4565 و 5/10 برقم 4787 و 5/10 برقم 5144 و 5/10 برقم 5511 و 8/13 برقم 7679 و 8/13 برقم 8921 و 8/13 برقم 9501 و 8/13 برقم 9743 و 8/13 برقم 10115 و 8/13 برقم 10261 و 11/16 برقم 14219 و 11/16 برقم 14421 و 14/418 برقم 16607 و 24/770 برقم 19484 و 24/770 برقم 19557 و 24/770 برقم 19574 و 24/770 برقم 19588 و 24/770 برقم 19611 و 24/770 برقم 19627 ) ومالك في الموطأ ( 30/333 برقم 1124 ) وابن حبان في صحيحه ( 38/223 برقم 3213 و 40/232 برقم 3336 و 42/284 برقم 4190 ) والدارمي في سننه ( 13/659 برقم 2164 ) والنسائي في الكبرى ( 22/1020 برقم 1955 و 27/1323 برقم 3341 و 27/1324 برقم 3342 و 32/1391 برقم 3521 و 39/1602 برقم 4389 و 39/1602 برقم 4390 و 39/1602 برقم 4391 و 39/1602 برقم 4392 و 39/1603 برقم 4393 )