حديث رقم 441 - من كتاب السنن الكبرى للنسائي - كِتَابُ الصَّلَاةِ

نص الحديث

441 أَخْبَرَنَا إِسْحَاقُ بْنُ مَنْصُورٍ ، قَالَ : أَخْبَرَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ ، قَالَ : حَدَّثَنَا مَالِكٌ ، عَنِ الزُّهْرِيِّ ، عَنْ عُرْوَةَ ، عَنْ عَائِشَةَ ، أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يُصَلِّي مِنَ اللَّيْلِ إِحْدَى عَشْرَةَ رَكْعَةً ، يُوتِرُ مِنْهَا بِوَاحِدَةٍ ، ثُمَّ يَضْطَجِعُ عَلَى شِقِّهِ الْأَيْمَنِ *

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اخرجه البخاري في صحيحه ( 10/399 برقم 608 و 14/618 برقم 963 و 19/706 برقم 1084 و 19/713 برقم 1100 و 19/724 برقم 1119 و 19/726 برقم 1121 و 19/727 برقم 1122 و 19/729 برقم 1125 و 80/3341 برقم 5977 ) ومسلم في صحيحه ( 13/281 برقم 1234 و 13/281 برقم 1236 و 13/281 برقم 1237 و 13/283 برقم 1249 و 13/284 برقم 1263 و 13/284 برقم 1264 و 13/284 برقم 1267 و 13/284 برقم 1275 و 13/293 برقم 1338 ) وأبو داود في سننه ( 2/241 برقم 1092 و 2/241 برقم 1096 و 2/241 برقم 1103 و 2/242 برقم 1170 و 2/242 برقم 1171 و 2/242 برقم 1180 و 2/242 برقم 1182 و 2/242 برقم 1190 و 2/242 برقم 1191 ) والترمذي في جامعه ( 2/321 برقم 443 و 2/323 برقم 445 ) والنسائي في الصغرى ( 7/398 برقم 683 و 11/576 برقم 942 و 13/804 برقم 1319 و 20/997 برقم 1694 و 20/1001 برقم 1706 و 20/1003 برقم 1714 و 20/1004 برقم 1715 و 20/1005 برقم 1718 و 20/1005 برقم 1722 و 20/1006 برقم 1723 و 20/1015 برقم 1745 و 20/1017 برقم 1751 و 20/1020 برقم 1757 ) وابن ماجه في سننه ( 6/230 برقم 1153 و 6/308 برقم 1361 و 6/308 برقم 1363 ) ومالك في الموطأ ( 7/69 برقم 268 و 7/69 برقم 269 و 7/72 برقم 290 ) وابن خزيمة في صحيحه ( 4/296 برقم 1011 و 4/298 برقم 1013 و 4/310 برقم 1040 و 4/312 برقم 1049 و 4/313 برقم 1105 و 4/313 برقم 1106 و 4/314 برقم 1135 و 7/400 برقم 2025 ) وابن حبان في صحيحه ( 37/202 برقم 2472 و 37/202 برقم 2480 و 37/202 برقم 2481 و 37/202 برقم 2505 و 37/202 برقم 2508 و 37/202 برقم 2510 و 37/202 برقم 2511 و 37/202 برقم 2662 و 37/202 برقم 2664 و 37/202 برقم 2666 و 37/202 برقم 2667 و 37/202 برقم 2671 و 37/202 برقم 2687 و 37/202 برقم 2692 ) والحاكم في المستدرك ( 8/62 برقم 1090 و 8/62 برقم 1094 و 8/62 برقم 1095 و 27/237 برقم 3881 ) والدارمي في سننه ( 3/265 برقم 1467 و 3/267 برقم 1473 و 3/284 برقم 1499 و 3/329 برقم 1607 ) والنسائي في الكبرى ( 4/231 برقم 444 و 4/233 برقم 447 و 12/574 برقم 1005 و 12/682 برقم 1218 و 12/689 برقم 1231 و 13/743 برقم 1326 و 13/743 برقم 1327 و 13/743 برقم 1328 و 13/743 برقم 1329 و 14/765 برقم 1388 و 14/766 برقم 1389 و 14/768 برقم 1394 و 14/769 برقم 1397 و 14/770 برقم 1398 و 14/779 برقم 1425 و 14/782 برقم 1429 و 14/786 برقم 1435 و 15/884 برقم 1626 و 4/231 برقم 444 و 4/233 برقم 447 و 12/574 برقم 1005 و 12/682 برقم 1218 و 12/689 برقم 1231 و 13/743 برقم 1326 و 13/743 برقم 1327 و 13/743 برقم 1328 و 13/743 برقم 1329 و 14/765 برقم 1388 و 14/766 برقم 1389 و 14/768 برقم 1394 و 14/769 برقم 1397 و 14/770 برقم 1398 و 14/779 برقم 1425 و 14/782 برقم 1429 و 14/786 برقم 1435 و 15/884 برقم 1626 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 7/277 برقم 1842 و 7/277 برقم 1847 و 7/277 برقم 1848 و 7/278 برقم 1849 و 7/278 برقم 1850 و 7/279 برقم 1857 ) والسجستاني في مسند عائشة لابن أبي داود ( 0/3 برقم 89 ) وابن المنذر في الأوسط ( 3/40 برقم 328 و 17/395 برقم 2537 و 18/404 برقم 2571 و 18/405 برقم 2572 و 18/405 برقم 2573 و 18/406 برقم 2597 و 18/414 برقم 2641 و 18/424 برقم 2685 و 18/424 برقم 2691 ) والطحاوي في شرح معاني الآثار ( 3/59 برقم 1044 و 3/59 برقم 1046 و 3/59 برقم 1047 و 3/59 برقم 1050 و 3/59 برقم 1053 و 3/59 برقم 1054 و 3/59 برقم 1056 و 3/59 برقم 1057 و 3/59 برقم 1058 و 3/59 برقم 1062 و 3/59 برقم 1064 و 3/59 برقم 1066 و 3/59 برقم 1067 و 3/60 برقم 1113 و 3/60 برقم 1114 و 3/60 برقم 1115 ) والمحاملي في الأمالي ( 0/18 برقم 469 ) والطبراني في الأوسط ( 1/1 برقم 509 و 1/2 برقم 2756 و 2/15 برقم 3271 و 18/82 برقم 4436 و 22/1 برقم 5405 و 22/1 برقم 7195 و 22/1 برقم 7515 و 22/1 برقم 7929 و 22/9 برقم 9022 ) وأبو الشيخ الأصبهاني في طبقات المحدثين بأصبهان ( 14/287 برقم 956 ) والدارقطني في سننه ( 3/154 برقم 1340 و 5/174 برقم 1460 ) وأبو نعيم الأصبهاني في حلية الأولياء ( 0/218 برقم 3112 و 0/406 برقم 9186 و 0/409 برقم 10206 و 0/485 برقم 14856 و 0/485 برقم 14865 و 0/677 برقم 15877 ) وأبو نعيم الأصبهاني في أخبار أصبهان ( 55/113 برقم 1569 و 55/245 برقم 1697 ) وأبو نعيم الأصبهاني في معرفة الصحابة ( 5/7 برقم 6765 ) والبيهقي في السنن الكبير ( 3/33 برقم 2829 و 3/42 برقم 4156 و 3/42 برقم 4160 و 3/42 برقم 4246 و 3/42 برقم 4337 و 3/42 برقم 4344 و 3/42 برقم 4345 و 3/42 برقم 4346 و 3/42 برقم 4441 و 3/42 برقم 4442 و 3/42 برقم 4466 و 3/42 برقم 4468 و 3/42 برقم 4470 و 3/42 برقم 4471 و 3/42 برقم 4481 و 3/42 برقم 4499 و 3/42 برقم 4544 و 3/42 برقم 4545 و 3/42 برقم 4547 و 3/42 برقم 4548 و 3/42 برقم 4549 و 3/42 برقم 4553 و 3/42 برقم 4554 و 3/42 برقم 4555 و 3/42 برقم 4556 ) وإسماعيل بن جعفر في أحاديثه ( 0/3 برقم 212 ) والشافعي في السنن المأثورة ( 0/6 برقم 64 ) والطيالسي في مسنده ( 250/3 برقم 1541 و 250/3 برقم 1542 و 250/3 برقم 1641 و 250/3 برقم 1675 ) وعبدالرزاق في مصنفه ( 3/356 برقم 4516 و 3/360 برقم 4552 و 3/360 برقم 4565 و 3/361 برقم 4568 و 3/361 برقم 4570 و 3/361 برقم 4571 و 3/366 برقم 4628 و 3/368 برقم 4642 و 3/368 برقم 4645 و 3/368 برقم 4646 ) والحميدي في مسنده ( 0/17 برقم 173 و 0/17 برقم 174 و 0/17 برقم 177 و 0/17 برقم 191 ) و ( 1/193 برقم 1332 ) وابن أبي شيبة في مصنفه ( 6/799 برقم 6248 و 6/800 برقم 6257 و 6/800 برقم 6258 و 6/800 برقم 6259 و 6/800 برقم 6265 و 6/806 برقم 6291 و 6/808 برقم 6310 و 6/841 برقم 6530 و 6/862 برقم 6708 و 6/863 برقم 6732 و 22/3946 برقم 26013 ) وعبد بن حميد في مسنده ( 1/120 برقم 1474 و 1/120 برقم 1490 ) والحافظ ابن حجر في المطالب العالية ( 5/125 برقم 639 و 5/125 برقم 640 و 5/126 برقم 664 ) وأبو يعلى الموصلي في مسنده ( 1/149 برقم 4484 و 1/149 برقم 4504 و 1/149 برقم 4614 و 1/149 برقم 4662 و 1/149 برقم 4663 و 1/149 برقم 4669 ) وابن جارود في المنتقى ( 2/51 برقم 270 ) والباغندي في مسند عمر بن عبدالعزيز ( 0/7 برقم 11 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 7/246 برقم 1676 و 7/255 برقم 1716 و 7/255 برقم 1717 و 7/255 برقم 1718 و 7/256 برقم 1722 و 7/256 برقم 1725 و 7/256 برقم 1726 و 7/256 برقم 1727 و 7/271 برقم 1793 )