حديث رقم 3004 - من كتاب صحيح مسلم - كِتَابُ الْمُسَاقَاةِ

نص الحديث

3004 حَدَّثَنِي أَبُو الطَّاهِرِ ، أَخْبَرَنَا ابْنُ وَهْبٍ ، عَنِ ابْنِ جُرَيْجٍ ، أَنَّ أَبَا الزُّبَيْرِ ، أَخْبَرَهُ عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ : إِنْ بِعْتَ مِنْ أَخِيكَ ثَمَرًا ، ح وحَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَبَّادٍ ، حَدَّثَنَا أَبُو ضَمْرَةَ ، عَنِ ابْنِ جُرَيْجٍ ، عَنْ أَبِي الزُّبَيْرِ ، أَنَّهُ سَمِعَ جَابِرَ بْنَ عَبْدِ اللَّهِ ، يَقُولُ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : لَوْ بِعْتَ مِنْ أَخِيكَ ثَمَرًا ، فَأَصَابَتْهُ جَائِحَةٌ ، فَلَا يَحِلُّ لَكَ أَنْ تَأْخُذَ مِنْهُ شَيْئًا ، بِمَ تَأْخُذُ مَالَ أَخِيكَ بِغَيْرِ حَقٍّ ؟ ، وحَدَّثَنَا حَسَنٌ الْحُلْوَانِيُّ ، حَدَّثَنَا أَبُو عَاصِمٍ ، عَنِ ابْنِ جُرَيْجٍ بِهَذَا الْإِسْنَادِ مِثْلَهُ *

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اخرجه البخاري في صحيحه ( 24/926 برقم 1428 و 34/1341 برقم 2105 و 34/1343 برقم 2112 و 42/1463 برقم 2281 ) ومسلم في صحيحه ( 28/653 برقم 2915 و 28/657 برقم 2926 و 28/657 برقم 2927 و 28/660 برقم 2954 و 28/660 برقم 2955 و 28/660 برقم 2956 و 28/660 برقم 2957 و 28/660 برقم 2958 و 28/660 برقم 2959 و 28/661 برقم 2966 و 28/661 برقم 2970 و 28/661 برقم 2972 و 28/661 برقم 2973 و 28/661 برقم 2975 و 29/668 برقم 3008 ) وأبو داود في سننه ( 3/277 برقم 1450 و 17/944 برقم 2978 و 17/944 برقم 2981 و 17/945 برقم 2982 و 17/955 برقم 3007 و 17/955 برقم 3008 و 17/958 برقم 3062 ) والترمذي في جامعه ( 14/883 برقم 1274 و 14/900 برقم 1297 ) والنسائي في الصغرى ( 36/1860 برقم 3860 و 36/1860 برقم 3861 و 36/1860 برقم 3863 و 36/1860 برقم 3864 و 36/1860 برقم 3900 و 45/2063 برقم 4492 و 45/2063 برقم 4493 و 45/2063 برقم 4494 و 45/2052 برقم 4496 و 45/2065 برقم 4497 و 45/2066 برقم 4500 و 45/2072 برقم 4517 و 45/2073 برقم 4518 و 45/2074 برقم 4520 و 45/2104 برقم 4593 و 45/2104 برقم 4594 و 45/2109 برقم 4600 و 45/2109 برقم 4601 ) وابن ماجه في سننه ( 13/645 برقم 2225 و 13/646 برقم 2227 و 13/646 برقم 2228 و 13/667 برقم 2276 ) وابن خزيمة في صحيحه ( 8/411 برقم 2272 ) وابن حبان في صحيحه ( 40/233 برقم 3358 و 51/466 برقم 5061 و 51/466 برقم 5082 و 51/466 برقم 5085 و 51/466 برقم 5090 و 51/466 برقم 5098 و 51/467 برقم 5116 و 51/469 برقم 5122 و 51/469 برقم 5125 و 51/469 برقم 5126 و 62/583 برقم 5283 ) والحاكم في المستدرك ( 15/67 برقم 1470 و 19/129 برقم 2216 و 19/129 برقم 2217 و 19/129 برقم 2223 ) والدارمي في سننه ( 20/927 برقم 2525 و 20/979 برقم 2586 ) والنسائي في الكبرى ( 32/1391 برقم 3516 و 32/1391 برقم 3517 و 32/1391 برقم 3519 و 32/1391 برقم 3520 و 32/1391 برقم 3559 و 32/1391 برقم 3560 و 48/1882 برقم 4979 و 48/1882 برقم 4980 و 48/1882 برقم 4981 و 48/1884 برقم 4983 و 48/1884 برقم 4984 و 48/1885 برقم 4987 و 48/1892 برقم 5003 و 48/1893 برقم 5004 و 48/1894 برقم 5006 و 48/1894 برقم 5007 و 48/1926 برقم 5083 و 48/1926 برقم 5084 و 48/1931 برقم 5090 و 48/1931 برقم 5091 ) وأبو حنيفة في مسنده برواية أبي نعيم ( 12/6 برقم 143 و 27/4 برقم 350 ) وأبو يوسف القاضي في الآثار ( 0/32 برقم 849 ) والشافعي في السنن المأثورة ( 0/17 برقم 195 و 0/17 برقم 199 و 0/17 برقم 203 و 0/26 برقم 396 ) والطيالسي في مسنده ( 251/17 برقم 1881 و 251/17 برقم 1882 ) والحميدي في مسنده ( 0/188 برقم 1222 و 0/188 برقم 1232 ) وأبو القاسم البغوي في الجعديات ( 0/246 برقم 2223 ) وابن أبي شيبة في مصنفه ( 16/3012 برقم 20835 و 16/3087 برقم 21388 و 16/3240 برقم 22138 و 16/3440 برقم 22775 و 40/5233 برقم 35542 ) وعبد بن حميد في مسنده ( 1/117 برقم 1076 ) والترمذي في العلل الكبير ( 9/21 برقم 211 ) وأبو يعلى الموصلي في مسنده ( 1/108 برقم 1742 و 1/108 برقم 1766 و 1/108 برقم 1793 و 1/108 برقم 1801 و 1/108 برقم 1804 و 1/108 برقم 1805 و 1/108 برقم 1837 و 1/108 برقم 1874 و 1/108 برقم 1987 و 1/108 برقم 2014 و 1/108 برقم 2077 و 1/108 برقم 2087 و 1/108 برقم 2089 و 1/108 برقم 2116 ) وابن جارود في المنتقى ( 6/65 برقم 580 و 6/65 برقم 581 و 6/65 برقم 591 و 6/67 برقم 621 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 17/620 برقم 4064 و 17/621 برقم 4065 و 17/623 برقم 4074 و 17/623 برقم 4075 و 17/623 برقم 4078 و 17/623 برقم 4079 و 17/623 برقم 4080 و 17/623 برقم 4081 و 17/623 برقم 4082 و 17/624 برقم 4085 و 17/633 برقم 4139 و 17/633 برقم 4140 و 17/633 برقم 4141 و 17/633 برقم 4142 و 17/633 برقم 4143 و 17/634 برقم 4144 و 17/634 برقم 4145 و 17/634 برقم 4146 و 17/634 برقم 4147 و 17/641 برقم 4247 ) والطحاوي في شرح معاني الآثار ( 15/6 برقم 3631 و 15/6 برقم 3632 و 15/6 برقم 3641 و 15/6 برقم 3643 و 15/6 برقم 3646 و 15/7 برقم 3660 و 15/7 برقم 3661 و 15/7 برقم 3662 و 15/7 برقم 3666 و 15/7 برقم 3673 و 15/8 برقم 3677 و 15/8 برقم 3679 و 19/1 برقم 3919 و 19/1 برقم 3931 و 19/1 برقم 3932 و 19/1 برقم 3933 ) والطحاوي في مشكل الآثار ( 0/19 برقم 118 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 17/641 برقم 4247 ) والطحاوي في شرح معاني الآثار ( 15/6 برقم 3631 و 15/6 برقم 3632 و 15/6 برقم 3641 و 15/6 برقم 3643 و 15/6 برقم 3646 و 15/7 برقم 3660 و 15/7 برقم 3661 و 15/7 برقم 3662 و 15/7 برقم 3666 و 15/7 برقم 3673 و 15/8 برقم 3677 و 15/8 برقم 3679 و 19/1 برقم 3919 و 19/1 برقم 3931 و 19/1 برقم 3932 و 19/1 برقم 3933 ) والطحاوي في مشكل الآثار ( 0/19 برقم 118 و 0/19 برقم 119 و 0/19 برقم 120 و 0/216 برقم 2253 و 0/216 برقم 2262 ) والرامهرمزي في المحدث الفاصل بين الراوي والواعي ( 0/6 برقم 100 ) والطبراني في الأوسط ( 18/86 برقم 4945 و 22/1 برقم 5383 و 15/106 برقم 5815 و 15/106 برقم 6570 و 15/106 برقم 6959 و 15/112 برقم 8983 و 15/113 برقم 11076 و 15/113 برقم 11110 ) والطبراني في الكبير ( 88/138 برقم 1727 ) وأبو نعيم الأصبهاني في حلية الأولياء ( 0/416 برقم 11071 ) والبيهقي في السنن الكبير ( 13/445 برقم 9906 و 13/445 برقم 9953 و 13/445 برقم 9954 و 13/445 برقم 9955 و 13/445 برقم 9956 و 13/445 برقم 9957 و 13/445 برقم 9962 و 13/445 برقم 9972 و 13/445 برقم 9973 و 13/445 برقم 9978 و 13/445 برقم 9979 و 13/445 برقم 9981 و 13/445 برقم 9982 و 13/445 برقم 9987 و 13/445 برقم 9989 و 13/445 برقم 9993 و 13/445 برقم 10000 و 13/445 برقم 10001 و 13/445 برقم 10014 و 13/446 برقم 10161 و 29/548 برقم 10943 ) والبيهقي في السنن الصغير ( 7/243 برقم 1497 و 7/244 برقم 1499 و 7/244 برقم 1501 و 7/293 برقم 1686 )