حديث رقم 4468 - من كتاب السنن الصغرى للنسائي - كتاب البيوع

نص الحديث

4468 أَخْبَرَنَا إِسْحَاقُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ قَالَ : قُلْتُ : لِأَبِي أُسَامَةَ : أَحَدَّثَكُمْ عُبَيْدُ اللَّهِ ، عَنْ نَافِعٍ ، عَنْ ابْنِ عُمَرَ قَالَ : نَهَى رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَنْ تَلَقِّي الْجَلْبِ حَتَّى يَدْخُلَ بِهَا السُّوقَ ، فَأَقَرَّ بِهِ أَبُو أُسَامَةَ وَقَالَ : نَعَمْ *

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اخرجه البخاري في صحيحه ( 24/926 برقم 1427 و 34/1307 برقم 2040 و 34/1309 برقم 2042 و 34/1312 برقم 2047 و 34/1312 برقم 2049 و 34/1313 برقم 2052 و 34/1314 برقم 2053 و 34/1316 برقم 2055 و 34/1318 برقم 2058 و 34/1319 برقم 2059 و 34/1327 برقم 2075 و 34/1329 برقم 2082 و 34/1330 برقم 2083 و 34/1330 برقم 2084 و 34/1333 برقم 2088 و 34/1333 برقم 2089 و 34/1340 برقم 2099 و 34/1340 برقم 2101 و 34/1343 برقم 2110 و 34/1349 برقم 2119 و 35/1375 برقم 2156 و 35/1375 برقم 2158 و 35/1379 برقم 2164 و 63/2111 برقم 3665 و 67/2680 برقم 4865 و 86/3592 برقم 6491 و 90/3650 برقم 6597 ) ومسلم في صحيحه ( 28/657 برقم 2924 و 28/657 برقم 2925 و 28/657 برقم 2930 و 28/658 برقم 2945 و 28/658 برقم 2946 و 28/658 برقم 2947 و 28/658 برقم 2948 و 28/658 برقم 2949 و 23/592 برقم 2623 و 23/592 برقم 2624 و 28/647 برقم 2879 و 28/647 برقم 2880 و 28/648 برقم 2881 و 28/648 برقم 2882 و 28/648 برقم 2887 و 28/649 برقم 2888 و 28/652 برقم 2905 و 28/652 برقم 2906 و 28/652 برقم 2907 و 28/652 برقم 2908 و 28/652 برقم 2909 و 28/652 برقم 2910 و 28/652 برقم 2911 و 28/657 برقم 2922 و 28/657 برقم 2923 ) وأبو داود في سننه ( 6/408 برقم 1819 و 17/940 برقم 2969 و 17/944 برقم 2975 و 17/944 برقم 2976 و 17/946 برقم 2986 و 17/958 برقم 3031 و 17/958 برقم 3041 و 17/958 برقم 3059 و 17/958 برقم 3081 و 17/958 برقم 3082 و 17/958 برقم 3083 و 17/958 برقم 3084 و 17/958 برقم 3087 ) والترمذي في جامعه ( 14/843 برقم 1209 و 14/843 برقم 1210 و 14/844 برقم 1212 و 14/885 برقم 1276 ) والنسائي في الصغرى ( 26/1634 برقم 3222 و 26/1635 برقم 3227 و 36/1860 برقم 3901 و 45/2052 برقم 4466 و 45/2053 برقم 4467 و 45/2055 برقم 4472 و 45/2055 برقم 4473 و 45/2056 برقم 4474 و 45/2063 برقم 4488 و 45/2063 برقم 4489 و 45/2063 برقم 4491 و 45/2067 برقم 4501 و 45/2067 برقم 4503 و 45/2068 برقم 4504 و 45/2074 برقم 4519 و 45/2075 برقم 4521 و 45/2090 برقم 4564 و 45/2090 برقم 4565 و 45/2091 برقم 4571 و 45/2092 برقم 4573 و 45/2092 برقم 4574 و 45/2092 برقم 4575 و 45/2102 برقم 4590 و 45/2102 برقم 4591 و 45/2103 برقم 4592 ) وابن ماجه في سننه ( 10/503 برقم 1873 و 13/626 برقم 2180 و 13/627 برقم 2182 و 13/629 برقم 2188 و 13/637 برقم 2206 و 13/645 برقم 2223 و 13/650 برقم 2235 و 13/651 برقم 2238 و 13/655 برقم 2249 و 13/667 برقم 2275 و 13/674 برقم 2294 ) وأحمد في المسند ( 9/2 برقم 393 و 9/2 برقم 394 و 9/2 برقم 395 و 5/10 برقم 5879 و 25/921 برقم 21127 و 25/921 برقم 21210 و 25/921 برقم 21127 و 25/921 برقم 21210 ) ومالك في الموطأ ( 22/218 برقم 782 و 30/324 برقم 1101 و 33/387 برقم 1307 و 33/392 برقم 1321 و 33/396 برقم 1339 و 33/396 برقم 1340 و 33/396 برقم 1341 و 33/403 برقم 1359 و 33/417 برقم 1389 و 33/417 برقم 1391 و 22/218 برقم 782 و 30/324 برقم 1101 و 33/387 برقم 1307 و 33/392 برقم 1321 و 33/396 برقم 1339 و 33/396 برقم 1340 و 33/396 برقم 1341 و 33/403 برقم 1359 و 33/417 برقم 1389 و 33/417 برقم 1391 ) والدارمي في سننه ( 13/657 برقم 2159 و 20/926 برقم 2524 و 20/930 برقم 2528 و 20/938 برقم 2536 و 13/657 برقم 2159 و 20/926 برقم 2524 و 20/930 برقم 2528 و 20/938 برقم 2536 ) والنسائي في الكبرى ( 48/1887 برقم 4990 و 48/1894 برقم 5005 و 48/1895 برقم 5008 و 48/1912 برقم 5052 و 48/1912 برقم 5053 و 48/1913 برقم 5060 و 48/1914 برقم 5061 و 48/1914 برقم 5062 و 48/1914 برقم 5063 و 48/1914 برقم 5064 و 48/1924 برقم 5079 و 48/1924 برقم 5080 و 48/1924 برقم 5081 و 48/1925 برقم 5082 و 32/1391 برقم 3560 و 39/1566 برقم 4253 و 39/1568 برقم 4259 و 48/1871 برقم 4954 و 48/1872 برقم 4955 و 48/1872 برقم 4956 و 48/1874 برقم 4960 و 48/1874 برقم 4961 و 48/1875 برقم 4962 و 48/1882 برقم 4976 و 48/1882 برقم 4977 و 48/1882 برقم 4978 و 48/1886 برقم 4988 و 48/1886 برقم 4989 ) والحافظ ابن حجر في المطالب العالية ( 11/333 برقم 1450 ) وأبو يعلى الموصلي في مسنده ( 1/151 برقم 5287 و 1/151 برقم 5327 و 1/151 برقم 5347 و 1/151 برقم 5360 و 1/151 برقم 5401 و 1/151 برقم 5483 و 1/151 برقم 5522 و 1/151 برقم 5588 و 1/151 برقم 5663 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 14/517 برقم 3357 و 17/601 برقم 3965 و 17/601 برقم 3967 و 17/601 برقم 3968 و 17/602 برقم 3969 و 17/602 برقم 3970 و 17/603 برقم 3979 و 17/603 برقم 3980 و 17/603 برقم 3981 و 17/603 برقم 3982 و 17/603 برقم 3983 و 17/610 برقم 4012 و 17/610 برقم 4013 و 17/616 برقم 4038 و 17/616 برقم 4039 و 17/616 برقم 4040 و 17/616 برقم 4041 و 17/616 برقم 4042 و 14/517 برقم 3357 و 17/601 برقم 3965 و 17/601 برقم 3967 و 17/601 برقم 3968 و 17/602 برقم 3969 و 17/602 برقم 3970 و 17/603 برقم 3979 و 17/603 برقم 3980 و 17/603 برقم 3981 و 17/603 برقم 3982 و 17/603 برقم 3983 و 17/610 برقم 4012 و 17/610 برقم 4013 و 17/616 برقم 4038 و 17/616 برقم 4039 و 17/616 برقم 4040 و 17/616 برقم 4041 و 17/616 برقم 4042 ) وإسماعيل بن جعفر في أحاديثه ( 0/1 برقم 12 و 0/1 برقم 15 ) والشافعي في السنن المأثورة ( 0/17 برقم 186 و 0/17 برقم 187 و 0/17 برقم 192 و 0/17 برقم 193 و 0/17 برقم 204 و 0/17 برقم 220 و 0/17 برقم 221 و 0/17 برقم 222 و 0/17 برقم 225 و 0/17 برقم 226 و 0/17 برقم 227 و 0/17 برقم 242 و 0/17 برقم 246 ) والشافعي في اختلاف الحديث ( 0/27 برقم 89 و 0/28 برقم 92 و 0/61 برقم 177 و 0/66 برقم 199 و 0/66 برقم 201 و 0/68 برقم 204 ) والطيالسي في مسنده ( 252/2 برقم 1907 و 252/5 برقم 1931 و 252/15 برقم 1986 و 252/39 برقم 2030 ) وعبدالرزاق في مصنفه ( 17/1509 برقم 13838 و 17/1509 برقم 13839 و 17/1509 برقم 13844 و 17/1509 برقم 13846 و 17/1531 برقم 14007 و 17/1543 برقم 14118 و 17/1583 برقم 14378 ) والحميدي في مسنده ( 0/93 برقم 603 و 0/93 برقم 604 و 0/93 برقم 650 و 0/93 برقم 666 ) وأبو الجهم الباهلي في جزئه ( 0/1 برقم 48 و 0/1 برقم 52 ) وأبو القاسم البغوي في الجعديات ( 0/132 برقم 995 و 0/132 برقم 996 و 0/174 برقم 1336 و 0/174 برقم 1337 و 0/260 برقم 2342 و 0/262 برقم 2358 و 0/269 برقم 2432 و 0/278 برقم 2551 و 0/278 برقم 2569 و 0/278 برقم 2570 ) وابن أبي شيبة في مصنفه ( 10/1852 برقم 13641 و 16/2939 برقم 20292 و 16/2969 برقم 20485 و 16/3023 برقم 20911 و 16/3034 برقم 21007 و 16/3037 برقم 21021 و 16/3037 برقم 21027 و 16/3087 برقم 21385 و 16/3087 برقم 21395 و 16/3240 برقم 22136 و 16/3240 برقم 22137 و 16/3240 برقم 22143 و 25/4426 برقم 28535 و 40/5233 برقم 35541 و 40/5233 برقم 35543 و 40/5243 برقم 35591 و 40/5244 برقم 35595 ) وعبد بن حميد في مسنده ( 1/115 برقم 739 و 1/115 برقم 748 و 1/115 برقم 758 و 1/115 برقم 776 و 1/115 برقم 838 )